आज के समय में लोगों को अच्छे संस्कारों और आदतों को अपनाना बहुत आसान लगता है, लेकिन बुरी आदतों को छोड़ना एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है। हालांकि, अगर कोई व्यक्ति दृढ़ निश्चय कर ले, तो वह किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
हमारे प्रिय प्रभु श्री कृष्ण हमें यही शिक्षा देना चाहते हैं कि इस संसार की असार और नश्वर चीजों के पीछे अपनी ऊर्जा और समय न बर्बाद करें, बल्कि हमें सच्चे परमात्मा के साथ अपने आत्मा को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यही सृष्टि का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
यह महत्वपूर्ण संदेश हमारे बीच में चंदफरी-हस्तपुर के गांव में चल रही
श्रीमद् भागवत कथा में दीदी वृंदा किशोरी और बृजकिशोर महाराज द्वारा दिया गया। वे बाल व्यास की युगल जोड़ी के रूप में व्यास पीठ से प्रवचन दे रहे थे। इस दिन की कथा का मुख्य विषय था
पूतना का उद्धार और श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर और प्रभावशाली वर्णन। भागवत कथा के पंचम दिवस पर उन्होंने गोवर्धन पर्वत की लीला का विस्तार से वर्णन किया और बताया कि किस तरह ब्रजवासियों ने इंद्रदेव की पूजा को छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया था।
इंद्रदेव इससे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने वज्र से ब्रज पर प्रलयंकारी मूसलधार बारिश भेज दी। लेकिन श्री कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की। इस घटना से इंद्रदेव का अहंकार टूट गया और उन्होंने श्री कृष्ण के महान रूप को पहचाना। भगवान श्री कृष्ण का यह अद्भुत चमत्कार ब्रजवासियों के लिए अमर हो गया, जिससे सभी भक्तों ने उनका भव्य रूप देखा और उनकी भक्ति में पूर्ण समर्पण किया।
कथा स्थल पर इस महत्वपूर्ण घटना का श्रद्धापूर्वक श्रवण किया गया। गोवर्धन महाराज के पूजन का आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया। इस अवसर पर श्री गोवर्धन महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रयो जैसे भजनों पर भक्तगण झूमते और नाचते हुए भक्ति में लीन हो गए। भक्तों ने भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास को व्यक्त करते हुए इस भव्य पूजन का हिस्सा बने।
कथा के समापन पर विशेष आरती का आयोजन किया गया,
जिसके बाद अन्नकूट का प्रसाद भक्तों में वितरित किया गया। यह प्रसाद ब्रजवासियों और श्रद्धालुओं के बीच एकजुटता और प्रेम का प्रतीक बना। इस दिन के आयोजन ने सभी भक्तों के दिलों में श्री कृष्ण की लीलाओं और उनकी महिमा के प्रति अडिग विश्वास को और मजबूत किया।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिली कि जीवन में हमें सद्गुणों को अपनाने के साथ-साथ बुरी आदतों से भी बचना चाहिए। हमें नश्वर और असार वस्तुओं की बजाय, परमात्मा की सच्ची भक्ति और उसकी प्राप्ति की दिशा में अपने प्रयासों को केंद्रित करना चाहिए।
जब हम अपनी आत्मा को परमात्मा से जोड़ते हैं, तो हम सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति कर सकते हैं। इस दिव्य कथा के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के अद्भुत रूप और उनके अविस्मरणीय कार्यों की गहराई से समझ मिली और सभी भक्तों ने इन शिक्षाओं को अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लिया।