“31 साल बाद किडनैप हुआ राजू गाजियाबाद में परिजनों से मिला, बेटे की कहानी सुन मां हुई भावुक, बहन की आंखों में आ गए आंसू
गाजियाबाद के खोड़ा थाने में 30 साल पहले अगवा हुआ राजू बुधवार को अपने परिवार से मिल गया। अखबार में छपी खबर देखकर उसके स्वजन थाने पहुंचे और पहचान लिया। मां और बहन से मिलकर राजू भावुक हो गया। पुलिस ने बताया कि राजू का असली नाम ओमराम है, और उसका अपहरण 1993 में साहिबाबाद से हुआ था।
साहिबाबाद। तीन दिन पहले खोड़ा थाने पहुंचे 30 साल पहले अगवा हुए युवक राजू को बुधवार को अपने परिवार से मिलवाया गया। अखबार में छपी खबर देखकर स्वजन थाने पहुंचे थे। राजू की मां और बहन ने उसके सिर पर चोट के निशान और सीने पर तिल को पहचान लिया। मां और बहन की आंखों में आंसू आ गए, और राजू ने उन्हें देखकर भावुक होकर मां के सीने से लगकर रोने लगा। वह परिवार से मिलकर बेहद खुश था।
राजू का असली नाम ओमराम है, और उसे 8 सितंबर 1993 को साहिबाबाद के शहीदनगर से अगवा किया गया था। इस मामले में उसके पिता भीम सिंह ने साहिबाबाद कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस की जांच के दौरान पता चला कि अपहरण के बाद भीम सिंह को एक चिट्ठी मिली थी, जिसमें सात लाख 40 हजार रुपये की फिरौती की मांग की गई थी, लेकिन इसके बाद कोई संपर्क नहीं हुआ था। राजू ने बताया कि उसे ट्रक में डालकर कुछ लोग ले गए थे।
मंगलवार शाम को अखबार में प्रकाशित फोटो और खबर देखकर राजू के चाचा ने उसे पहचान लिया और स्वजन को सूचित किया। इसके बाद राजू की मां, बहन और पिता खोड़ा थाने पहुंचे। राजू अपनी बहन को देखकर उसे बचपन के नाम से पुकारा, और मां ने उसे गले लगा लिया, लेकिन पिता ने उसे पहचानने से इनकार किया। इस पर परिवार वाले वापस चले गए।
बुधवार दोपहर को राजू के चाचा भोजराज, मामा का बेटा सुरेश और अन्य रिश्तेदार मिलने पहुंचे। भोजराज ने पुलिस को बताया कि राजू के पिता ने उसे अपनाने से मना कर दिया, इसलिए वे उसे घर नहीं ले जा सकते थे। फिर काफी समझाने के बाद रिश्तेदार राजू को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए और उसे थाने से लेकर रवाना हो गए।
राजू ने बताया कि उसे आरोपियों ने खेत में बनी झोपड़ी में रखा था और भेड़-बकरी चराने का काम कराया था। उसे बेड़ियों से बांधकर रखा जाता था और रोजाना मारपीट की जाती थी। एक बार उसके चेहरे पर मुक्का मारा गया था, जिससे उसका चेहरा विकृत हो गया और बोलने में कठिनाई होती थी। उसे एक रोटी खाना मिलता था और दिन में तीन-चार कप चाय दी जाती थी।
राजू ने यह भी बताया कि एक सरदार चालक ने उसे जैसलमेर (राजस्थान) में देखा और उसकी मदद की। सरदार ने उसे ट्रक में बैठाकर दिल्ली लाकर गाजियाबाद की ट्रेन में भेज दिया। वह दो दिन तक गाजियाबाद स्टेशन पर भटकता रहा और अंततः खोड़ा थाने पहुंचा, जहां पुलिस ने उसकी मदद की और स्वजन को ढूंढकर उसे मिलवाया।