अलीगढ़ NEWS : मुस्लिम विश्वविद्यालय: उर्दू अकादमी की बिल्डिंग पर कब्जे को लेकर विवाद
अलीगढ़
संवाददाता : संजय भारद्वाज
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के उर्दू विभाग और उर्दू अकादमी के बीच चल रहे विवाद ने एक बार फिर विश्वविद्यालय प्रशासन की नीतियों और निर्णयों पर सवाल उठाए हैं। उर्दू अकादमी के लिए 2006 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा दिए गए चार करोड़ रुपए के अनुदान से बनी इमारत पर अब उर्दू विभाग का कब्जा है, जबकि उर्दू अकादमी को यह बिल्डिंग नहीं मिली है। इसके कारण अकादमी के कामकाज में गंभीर असर पड़ा है और वह अपनी निर्धारित जिम्मेदारियों को निभाने में सक्षम नहीं हो पा रही है।
UGC का अनुदान और उर्दू अकादमी की स्थापना
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने देश की तीन प्रमुख उर्दू अकादमियों—अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू), जामिया मिलिया इस्लामिया दिल्ली, और मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय हैदराबाद—को उर्दू अकादमी की इमारत बनाने के लिए चार-चार करोड़ रुपए का अनुदान दिया था। एएमयू को वर्ष 2006 में यह अनुदान मिला था और 2012 में उर्दू अकादमी के लिए बनाई गई इमारत तैयार हो गई। लेकिन, हैरान करने वाली बात यह रही कि 2016 में विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह इमारत उर्दू अकादमी के बजाय उर्दू विभाग को दे दी।
उर्दू अकादमी की स्थिति
उर्दू अकादमी को इसके लिए दी गई चार करोड़ रुपए की राशि से बनाए गए फर्नीचर, कंप्यूटर और अन्य सुविधाओं से भी वंचित रखा गया। इसके बजाय, उर्दू अकादमी को अपनी गतिविधियों के लिए तीन छोटे कमरे और जर्जर इमारत मिली। वर्तमान में, उर्दू अकादमी जिस बिल्डिंग में कार्य कर रही है, वह न केवल शारीरिक रूप से कमजोर है, बल्कि उसमें कोई आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर या बजट भी नहीं है। उर्दू अकादमी का उद्देश्य था कि वह बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, और झारखंड जैसे राज्यों में उर्दू और उर्दू माध्यम के विद्यालयों के शिक्षकों को समयानुकूल प्रशिक्षण और ज्ञान प्रदान करे। हालांकि, वित्तीय और संसाधनों की कमी के कारण अकादमी यह जिम्मेदारी पूरी करने में असमर्थ रही है।
उर्दू विभाग का कब्जा
यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा उर्दू अकादमी की इमारत को उर्दू विभाग को सौंपे जाने से अकादमी के कार्यों में गंभीर कमी आई है। उर्दू अकादमी को अब तक न तो नया इंफ्रास्ट्रक्चर मिला है और न ही कोई बजट, जिससे वह अपने कार्यों को प्रभावी रूप से चला सके। वहीं, उर्दू विभाग ने उर्दू अकादमी की इमारत के अनुदान से प्राप्त फर्नीचर, कंप्यूटर और अन्य संसाधनों का इस्तेमाल किया, जो मूल रूप से अकादमी के लिए निर्धारित थे।
डिप्टी डायरेक्टर का विरोध
उर्दू अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर, डॉ. जुबेर शादाब ने इस संबंध में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि उन्होंने 2018, 2019 और 2020 में विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखे थे, जिसमें उर्दू अकादमी की इमारत को खाली करने की मांग की गई थी। हालांकि, इन पत्रों का कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। डॉ. शादाब ने कहा कि एएमयू प्रशासन की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया, जिससे उर्दू अकादमी की स्थिति और भी दयनीय हो गई है।
4 करोड़ रुपए का अनुदान: क्या मिला और क्या नहीं मिला?
जब एएमयू को चार करोड़ रुपए का अनुदान मिला था, तो उम्मीद की जा रही थी कि उर्दू अकादमी को आधुनिक इमारत, लाइब्रेरी, कॉन्फ्रेंस हॉल, कंप्यूटर लैब, फर्नीचर और अन्य आवश्यक संसाधन मिलेंगे। लेकिन हकीकत में अकादमी को केवल चार मेज, आठ कुर्सियां और तीन कमरों की जर्जर इमारत मिली। इसके बजाय, उर्दू विभाग ने उर्दू अकादमी के लिए निर्धारित कंप्यूटर, फर्नीचर और अन्य संसाधनों का उपयोग किया।
क्या समाधान हो सकता है?
इस स्थिति को लेकर छात्रों, शिक्षकों और अकादमी के अधिकारियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से उर्दू अकादमी के लिए एक अलग और उपयुक्त भवन बनाने की मांग की है। उनका कहना है कि उर्दू अकादमी को मिलने वाले अनुदान और संसाधनों का सही उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि वह अपने उद्देश्य को सही तरीके से पूरा कर सके। साथ ही, उर्दू विभाग और उर्दू अकादमी के बीच परिसरों के बंटवारे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, ताकि दोनों विभाग अपनी-अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा सकें।