लोनी में बनी तस्बी से दुनिया ले रही अल्लाह का नाम


हड्डियों के स्थान पर अब रेडियम और कांच की बनाई जा रही तस्बी

अकरम अली, गाजियाबाद

क्षेत्र के छोटे-छोटे घरों में बनने वाली रेडियम की तस्बी (माला) की चमक विदेशों में देखने को मिलती है। गाजियाबाद के लोनी में बनने वाली तस्बी सऊदी अरब से अन्य देशों तक पहुंचती है। पहले लोनी में हड्डियों से बनने वाली तस्बी का देश विदेशों में बोलबाला था लेकिन चाइनीज सामान ने पूरे बाजार को अपने अधीन कर लिया। जिससे लोनी के इस कारोबार पर भारी असर पड़ा। फिलहाल व्यापारी रेडियम व कांच की तस्बी का कारोबार कर गुजर बसर कर रहे हैं लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। व्यापारियों का मानना है कि चीन से विवाद के बाद चाइनीज सामान के हो रहे बहिष्कार से हड्डियों की तस्बी और आभूषणों के व्यापार को ऊंची उडान मिलेगी।

क्या है तस्बी

मुस्लिम समुदाय के लोग जिस माला को हाथ में लेकर अल्लाह को याद करते हैं। उस माला को तस्बी कहते हैं। यह माला सौ, पांच सौ और एक हजार दानों की बनाई जाती है। लोनी के अपर कोट, खन्ना नगर और व्यापारियान मोहल्ले में वर्षाें से तस्बी बनाने का काम होता है। यहां बने माल को सऊदी भेजा जाता है। जहां विदेशों से लोग हज करने आते हैं। लोग सऊदी से अल्लाह का नाम लेने को लोनी की बनी तस्बी खरीद कर ले जाते हैं। ऐसे लोनी के छोटे-छोटे घरों में बनने वाली रेडियम और कांच की तस्बी विदेशों में चमकती हैं।

रंग बिरंगी तैयार हो रहीं तस्बी

शुरूआत में रेडियम के सादा दाने की तस्बी तैयार होती थी लेकिन समय के साथ तस्बी भी रंग बिरंगी हो गई है। न केवल गोल बल्कि लंबे, अंडाकार आदि प्रकार के रंगीन दानों से तस्बी तैयार की जा रही है। जिसे लोनी से सऊदी भेजा जाता है। युवा वर्ग के लोग अक्सर रंग बिरंगी तस्बी खरीदना पसंद करते हैं।

हड्डियों की बनती थी तस्बी

लोग बताते हैं कि वर्षों पूर्व लोनी में बड़े पैमाने पर हड्डियों से तस्बी और ब्रासलेट, बलों की क्लिप, गले के हार, लाकेट समेत कई अन्य आभूषण बनाए जाते थे। साथ ही पशुओं के सींग से शोपीस बनाने का काम होता था। यहां बनी तस्बी सऊदी और अन्य आभूषण व शोपीस लंडन, अमेरिका, न्यू यार्क, चीन समेत कई अन्य देशों को सप्लाई होता था। लेकिन धीरे-धीरे चीन का सामान बाजार में फैलता चला गया। जिसके कारण यहां होने वाला कारोबार ठप हो गया। जिससे हजारों लोगों को कारोबार से हाथ धोने पड़े।

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